Mahabharat Story In Hindi | महाभारत की कहानी हिन्दी में


Mahabharat Story In Hindi | महाभारत की कहानी हिन्दी में, नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक बार फिर हमारी Website Be RoBoCo में, आज एक बार हम फिर हाजिर हैं आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी को लेकर जिसे हम Mahabharat Story In Hindi | महाभारत की कहानी हिन्दी में के नाम से जानते हैं।


दोस्तो क्या आपने भी Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat Hindi Mein, Mahabharat Full Story और Mahabharat Short Story In Hindi आदि के बारे में Search किया है और आपको निराशा हाथ लगी है ऐसे में आप बहुत सही जगह आ गए है, आइये Mahabharat Summary In Hindi, Who Wrote Mahabharata In Hindi, Mahabharat Kya Hai और Mahabharat Katha Hindi Me ​आदि के बारे में बुनियादी बाते जानते है।


महाभारत एक हिंदू महाकाव्य है जो कुरु वंश की कहानी के साथ-साथ पांडवों और कौरवों के बीच की लड़ाई को बताता है। महाभारत भारतीय संस्कृति और समाज को आकार देने में एक प्रभावशाली ग्रंथ रहा है।


यह मानव इतिहास में लिखा गया अब तक का सबसे लंबा महाकाव्य है। अगर आप महाभारत की कहानी हिन्दी में को ढूंढते हुए इस लेख पर आ गए है तो लेख के अंत तक बने रहे, आपको महाभारत में वर्णित विभिन्न पात्रों से जुड़ी पूरी जानकारी मिलेगी, चलिए शुरू करते है।

 

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Mahabharat Story In Hindi | महाभारत की कहानी हिन्दी में


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महाभारत प्राचीन भारत के प्रमुख संस्कृत महाकाव्यों में से एक है। इस महाकाव्य में दार्शनिक और भक्ति सामग्री को शामिल किया गया है जैसे कि चार जीवन के लक्ष्यों या पुरुषार्थों की चर्चा, दमयंती की कहानी, रामायण का एक संक्षिप्त संस्करण और ऋष्यश्रृंगा, जिसे अक्सर अपने आप में काम माना जाता है।

 

Mahabharat Kya Hai?

 

महाभारत एक महाकाव्य है जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने संस्कृत भाषा में की थी। पहले इसका नाम 'जय संहिता' था। बाद में यह भारत और फिर महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाभारत दुनिया की सबसे लंबी महाकाव्य कविता है, जिसमें 100,000 से अधिक छंद हैं। इसके कुछ हिस्से संभवत: छठी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं।

 

इसमें हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए कुरु वंश के पांडवों और कौरवों नाम के दो समूहों के बीच संघर्ष का वर्णन किया गया है। महाभारत का युद्ध अठारह दिनों तक चला और अंततः यह लडाई कुरु वंश को नष्ट कर देती है और पांडव नए शासक बन जाते हैं।

 

महाभारत की कहानी हिन्दी मे

 

महाभारत का युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमे उस समय के लगभग सभी मुख्य योद्धाओ ने भाग लिया। यह युद्ध सिर्फ कौरवों और पांडवों के बीच नहीं था वरन धर्म और अधर्म के बीच भी था जिसमे भगवान कृष्ण अर्जुन का सारथी बनकर हिस्सा ले रहे थे। सम्पूर्ण महाभारत को अठारह पर्वों में विभाजित किया गया। इनकी सूची कुछ इस प्रकार से हैं।

 

1. आदि पर्व  महाभारत | Aadi Parv Mahabharat Story In Hindi

2. सभापर्व महाभारत | Sabha Parv Mahabharat Story In Hindi

3. वन पर्व महाभारत | Van Parv Mahabharat Story In Hindi

4. विराट पर्व महाभारत | Virat Parv Mahabharat Story In Hindi

5. उद्योग पर्व महाभारत | Udyog Parv Mahabharat Story In Hindi

6. भीष्म पर्व महाभारत | Bheeshm Parv Mahabharat Story In Hindi

7. द्रोण पर्व महाभारत | Dron Parv Mahabharat Story In Hindi

8. कर्ण पर्व महाभारत | Karna Parv Mahabharat Story In Hindi

9. शल्य पर्व महाभारत | Shalya Parv Mahabharat Story In Hindi

10. सौप्तिक पर्व महाभारत | Souptik Parva Mahabharat Story In Hindi.

11. स्त्री पर्व महाभारत | Stree Parva Mahabharat Story In Hindi

12. शान्ति पर्व महाभारत | Shanti Parv Mahabharat Story In Hindi

13. अनुशासन पर्व महाभारत | Anushasan Parv Mahabharat Story In Hindi

14. आश्वमेधिक पर्व महाभारत | Aashwamedhik Parv Mahabharat Story In Hindi

15. आश्रमवासिक पर्व महाभारत | Aashramvasik Parv Mahabharat Story In Hindi

16. मौसल पर्व महाभारत | Mausal Parv Mahabharat Story In Hindi

17. महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत | Mahaprasthanik Parv Mahabharat Story In Hindi

18. स्वर्गारोहण पर्व  महाभारत | Swargarohan Parv Mahabharat Story In Hindi

 

1. आदि पर्व महाभारत | Aadi Parv Mahabharat  Story In Hindi

 

आदि का मतलब प्रारम्भ होता है। महाभारत के आदि पर्व में इस ग्रंथ की प्रस्तावना अंकित है जिसके बारे मे जानना अत्यधिक जरूरी है क्योंकि इसको जाने बिना आगे इस ग्रंथ में बताई गई बातो को समझने मे मुश्किल हो सकती है। 

 

आदि पर्व में मुख्य रुप से देवों और दानवों द्वारा किया गया समुद्र मंथन, देवताओं के अंशावतरण, दुष्यन्त-शकुन्तला की कथा, शान्तनु और गंगा की कथा, भीष्म का जन्म, भीष्म प्रतिज्ञा, कौरवों तथा पाण्डवों की उत्पत्ति, द्रौपदी की उत्पत्ति, द्रौपदी-स्वयंवर और विवाह, पाण्डव का हस्तिनापुर में आगमन, खाण्डव वन का दहन और इन्द्रप्रस्थ की स्थापना आदि का प्रभावशाली ढंग से वर्णन है। महाभारत महाकाव्य के इस पर्व के अन्तर्गत कुल 19 उपपर्व और 233 अध्याय हैं।

 

इसकी कहानी कुछ इसप्रकार है।

 

कौरव राजवंश में शांतनु नाम के प्रतापी राजा हुए। उन्होने भगवती गंगा से विवाह किया। इनकी 8 संतान हुई। 7 बच्चो को तो इन्होंने पानी में बहा दिया, आठवीं संतान को नही बहाया। आठवीं संतान का नाम देवव्रत रखा गया जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने कभी भी विवाह ना करने की प्रतिज्ञा ली थी। शांतनु ने सत्यवती नाम की अन्य स्त्री से विवाह किया और उनकी दो संतान हुई।


  • चित्रांगद
  • विचित्रवीर्य

 

विचित्रवीर्य की दो संतान हुई।

 

  • धृतराष्ट्र 
  • पांडु

 

धृतराष्ट्र की शादी गांधारी से और पांडु की शादी कुंती (कृष्ण की बुआ) से हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र (दुर्योधन सबसे बड़ा) और एक पुत्री (दुःशला जिसका विवाह जयद्रथ से हुआ) जबकि पांडु को कुंती से 3 पुत्र (युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन) और दूसरी पत्नी माद्री से 2 पुत्र नकुल और सहदेव प्राप्त हुए।इस प्रकार धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहलाए। 

 

सभी राजकुमारों को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा द्रोणाचार्य जी के द्वारा दी गई। दुर्योधन को चिंता रहती थीं कि हस्तिनापुर का राज्य सिंहासन पांडवों को ना मिल जाए क्योंकि पांडवों और कौरवों में युधिष्ठिर सबसे बड़े थे। इसलिए दुर्योधन ने उन्हें मारने के लिए लाख महल (आग लगने पर तुरन्त जलने वाला महल) का षड्यंत्र रचा लेकिन पांडव महल से बच निकले और दुर्गम जंगल में पहुंच गए। इसके बाद उनका सामना हिडिंब नाम के राक्षस से हुआ जिसका भीम ने वध किया। राक्षस की  बहन हिडिंबा से भीम की शादी हुई जिससे उनको घटोत्कच नाम का पुत्र पैदा हुआ।

 

पांडव ब्राह्मण के भेष में द्रौपदी के स्वयंवर में पहुंचे जहां पर अर्जुन ने अपने तीर से मछली की आंख को निशाना बनाकर द्रौपदी से विवाह किया। द्रौपदी को साथ लेकर पांडव अपनी माता कुंती के पास पहुंचे और अर्जुन ने बोला की मां मैं आज बहुत अच्छी चीज लाया हूं तो माता ने बिना देखे ही कहा कि पांचों भाई मिलकर बांट लो। तब द्रौपदी की शादी पांचों भाइयों हो गई।

 

अर्जुन पांडवों के बचने स्वयंवर में द्रौपदी के मिलने के बाद यह खबर सब जगह फैल गई कि पांडव जिंदा है तो इसके बाद भीष्मा और द्रोणाचार्य ने उनको वापस हस्तिनापुर बुला लिया। जहां पर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को सलाह दी कि वह आधा राज्य लेकर खांडवप्रस्थ को अपनी राजधानी बना ले और इस बात को मानकर युधिष्ठिर ने खांडवप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया।

 

2. सभापर्व महाभारत | Sabha Parv Mahabharat Story In Hindi

 

महाभारत के सभापर्व में मयासुर द्वारा युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण, लोकपालों की भिन्न-भिन्न सभाओं का वर्णन, युधिष्ठिर द्वारा राजसूय करने का संकल्प करना, जरासन्ध का वृत्तान्त तथा उसका वध, राजसूय के लिए अर्जुन आदि चार पाण्डवों की दिग्विजय यात्रा, राजसूय यज्ञ, शिशुपालवध, द्युतक्रीडा, युधिष्ठिर की द्यूत में हार और पाण्डवों का वनगमन आदि वर्णित है।

 

इसकी कहानी कुछ इसप्रकार है 

 

दुर्योधन जोकि धृतराष्ट्र का जयेष्ठ पुत्र था। वह पांडवों से जलता था और वह सोचता था कि पांडवों का विनाश कैसे किया जाए वह जानता था कि पांडवों से सीधे तौर पर युद्ध करने पर वह कभी भी नहीं जीत पाएगा। इसलिए उसने अपने मामा शकुनी के साथ सलाह करके पांडवों को पासे के खेल के लिए आमंत्रित किया।

 

पांडवों की तरफ से युधिष्ठिर ने यह खेल खेला और शकुनी से अपना राज पाट हार गए। यहां तक कि वो खुद कोअपने भाइयों को और अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दाव पर लगा कर हार गए। कौरवों द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करने की कोशिश की गई। जुए के परिणाम स्वरूप पांडवों को 12 वर्षों का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास में रहना प्राप्त हुआ।

 

3. वन पर्व महाभारत | Van Parv Mahabharat  Story In Hindi

 

वन पर्व में पाण्डवों का वनवासी जीवन, श्रीकृष्ण का पाण्डवों से मिलन, द्रौपदी और भीम द्वारा युधिष्ठिर को उत्साहित करना, युधिष्ठिर की तीर्थयात्रा, यक्षों से युद्ध, पाण्डवों की अर्जुन विषयक चिन्ता, युधिष्टिर से वार्तालाप के कारण नहुष की सर्पयोनि से मुक्ति, पाण्डवों का काम्यकवन में निवास, घोषयात्रा के बहाने दुर्योधन आदि का द्वैतवन में जाना, गन्धर्वों द्वारा कौरवों से युद्ध करके उन्हें पराजित कर बन्दी बनाना, पाण्डवों द्वारा गन्धर्वों को हटाकर दुर्योधनादि को छुड़ाना, दुर्योधन की ग्लानी, जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का हरण, भीम द्वारा जयद्रथ को बन्दी बनाना और युधिष्ठिर द्वारा छुड़ा देना, इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना, यक्ष-युधिष्ठिर-संवाद और अन्त में अज्ञातवास के लिए परामर्श का वर्णन है।

 

वन पर्व की कहानी कुछ इस प्रकार से है कि जब पांडवों को वनवास मिल गया तो पांडवों के साथ द्रौपदी और कुछ ब्राह्मणों ने प्रस्थान किया। ब्राह्मणों की सलाह से युधिष्ठिर ने सूर्य भगवान की उपासना करी और उनको अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई जिससे सभी लोग पेट भर खाना खा सकते हैं।

 

कुछ समय बीतने के बाद दुर्योधन, अपनी रानियों के साथ 1 गया जहां पर उसकी इच्छा सरोवर में स्नान करने की हुई। उस सरोवर में पहले से ही गंधर्व के राजा चित्रसेन स्नान कर रहे थे। दुर्योधन और चित्रसेन में युद्ध प्रारंभ हुआ। चित्रसेन ने दुर्योधन को हरा दिया और उनकी सभी रानियों का हरण करके स्वर्ग ले जाने लगे। तब पांडवों को यह बात पता चली और उन्होंने दुर्योधन की मदद की और दुर्योधन को उनके चंगुल से छुड़ाया। दुर्योधन को बहुत लज्जा आई और उसने धर्मराज युधिष्ठिर को प्रणाम किया और वापस अपने राज्य की ओर लौट गया।

 

4. विराट पर्व महाभारत | Virat Parv Mahabharat Story In Hindi

 

महाभारत के विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि में विराट नगर में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, युधिष्ठिर द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, दुर्योधन के गुप्तचरों द्वारा पाण्डवों की खोज, कौरवों द्वारा विराट की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, अर्जुन द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना आदि का वर्णन है।

 

पांडवों का 12 वर्ष का वनवास पूरा हुआ और 1 वर्ष के अज्ञातवास का समय आ गया। अज्ञातवास की शर्त यह थी कि कोई भी उनको पहचान ना पाए और अगर किसी ने उनको पहचान लिया तो फिर उनको 12 वर्ष का वनवास काटना होगा। अज्ञातवास को काटने के लिए पांडवों ने विराट नगर की ओर प्रस्थान किया और विराट नगर के पास पहुंचकर उन्होंने यह निर्णय लिया कि कौन इस तरह के वेश में विराटनगर पहुंचेगा। युधिष्ठिर ने बताया कि मैं राजा विराट के यहाँ 'कंक' नाम धारण कर ब्राह्मण के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने भीम से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, अर्जुन से कहा कि तुम 'बृहन्नला' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को संगीत और नृत्य की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा नकुल 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा सहदेव 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले और द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री रखकर महल में रानी की साज-सज्जा का काम करने की जिम्मेदारी उठाई।

 

इस तरह से समय गुजर रहा था लेकिन विराटनगर के महाराज की महारानी का भाई कीचक की सैरंध्री यानी कि द्रौपदी पर बुरी नजर थी जिसके बारे में द्रौपदी ने भीम को बताया तो भीम ने उसका वध कर दिया और यह खबर जब दुर्योधन को मिली तो उसे समझते देर न लगी कि यह काम पांडवों का ही है। इसके बाद उसने विराट नगर की सभी गायों का हरण कर लिया और विराटनगर पर आक्रमण किया। तब तक अज्ञातवास का समय पूरा हो चुका था और सभी पांडवों में अपने अस्त्र-शस्त्र को उठाकर लड़ाई की। 

 

युद्ध के बाद महाराजा विराट को पांडवों का परिचय प्राप्त हुआ तथा उन्होन अर्जुन से अपनी पुत्री उत्तरा के विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन अर्जुन में यह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और अपने पुत्र अभिमन्यु की शादी का प्रस्ताव उत्तरा के साथ रखा। जिसे अनुमति मिल गई।

 

5. उद्योग पर्व महाभारत | Udyog Parv Mahabharat Story In Hindi

 

उद्योग पर्व में युद्ध के लिए द्रुपद की सहायता से पाण्डवों का युद्धसज्जित होना, कौरवों की युद्ध की तैयारी, द्रुपद के पुरोहित का कौरवों की सभा मे जाना और सन्देश-कथन, युधिष्ठिर के सेनाबल का वर्णन, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को और धृतराष्ट्र द्वारा दुर्योधन को समझाना, पाण्डवों से परामर्श कर कृष्ण द्वारा शान्ति प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास जाना, दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का षडयन्त्र करना, गरुड़गालवसंवाद, विदुलोपाख्यान, लौटे हुए श्रीकृष्ण द्वारा कौरवों को दण्ड देने का परामर्श, पाण्डवों और कौरवों द्वारा सैन्यशिविर की स्थापना और सेनापतियों का चयन, दुर्योधन के दूत उलूक द्वारा सन्देश लेकर पाण्डव-सभा में जाना, दोनों पक्षों की सेनाओं का वर्णन, अम्बोपाख्यान, भीष्म-परशुराम का युद्ध आदि विषयों का वर्णन है।

 

उद्योग पर्व की कहानी कुछ इस प्रकार से है कि अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह की संतुष्टि हो जाने के बाद उनके विवाह में अनेक राजा उपस्थित हुए जिनके समक्ष श्री कृष्ण ने पांडवों और कौरवों की राजपाट से संबंधित समस्या को रखा और कौरवों के अन्याय की बात को सामने लाए और पांडवों का साथ देने के लिए कहा।

 

महाराज द्रुपद ने पांडवों का समर्थन किया जबकि बलराम ने उनका विरोध किया। इस प्रकार दुर्योधन के पास एक शांतिदूत को भेजने का निश्चय लिया गया जिसमें कहा गया कि दुर्योधन पांडवों को आधा राज्य लौटा दे अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रहें। दुर्योधन ने शांति प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसके बाद श्री कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। जहां पर उन्होंने कहा कि यदि पांडवों को 5 गांव भी मिल जाते हैं तब भी पांडव खुश होंगे और युद्ध नहीं करेंगे लेकिन दुर्योधन ने कहा कि वह बिना युद्ध के सुई की एक नोक के बराबर जमीन भी नहीं देगा। श्री कृष्ण वहां से लौट आए और उन्होंने पांडवों को कौरवों से युद्ध करने के लिए कहा। इस प्रकार कौरवों और पांडवों ने अपने अपने सेनापतियों को नियुक्त किया और अपने अपने शिविरों को स्थापित किया।

 

6. भीष्म पर्व महाभारत | Bheeshm Parv Mahabharat Story In Hindi

 

भीष्म पर्व में कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं में युद्धसम्बन्धी नियमों का निर्णय, शाकद्वीप तथा राहु, सूर्य और चन्द्रमा का प्रमाण, दोनों पक्षों की सेनाओं का आमने-सामने होना, अर्जुन के युद्ध-विषयक विषाद तथा व्याहमोह को दूर करने के लिए उन्हें उपदेश (श्रीमद्भगवद्गीता), उभय पक्ष के योद्धाओं में भीषण युद्ध तथा भीष्म के वध और शरशय्या पर लेटकर प्राणत्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा करने आदि का निरूपण है।

 

भीष्म पर्व में बताया गया है कि दोनों दलों की सेनाएं आमने सामने खड़ी हो गई और अपने सगे संबंधियों को सामने देखकर अर्जुन उनके साथ युद्ध करने का साहस नहीं कर पा रहे तब श्री कृष्ण ने अर्जुन के मोह तथा भ्रम को दूर करने के लिए कर्म योग का उपदेश दिया जिसे श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है।

 

महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था जिसमें 10वे दिन में जब शिखंडी भीष्म पितामह के सामने आ गई तब उन्होंने अपने अस्त्र शास्त्र का परित्याग कर दिया और इस मौके का फायदा उठाकर अर्जुन में उनको बाड़ों से घायल कर दिया और जब वह अपने रथ से नीचे गिरे तो बाणों की शैया बन गई।

 

भीष्म ने कहा कि मैं अपने प्राणों को उत्तरायण में त्याग दूंगा। भीष्म के सैया पर लेटने के बाद कौरव, पांडव व कर्ण भी उनसे मिलने आए। उन्होंने कर्ण से कहा कि तुम चाहो तो यह युद्ध को रोक सकते हो लेकिन कर्ण ने कहा कि अब बहुत देर हो गई है और अब मैं कुंती पुत्र नहीं एक सूत पुत्र ही हूं और मैं अपनी दोस्ती के लिए लडूंगा।

 

7. द्रोण पर्व महाभारत | Dron Parv Mahabharat Story In Hindi

 

द्रोण पर्व में भीष्म के धराशायी होने पर कर्ण का आगमन और युद्ध करना, सेनापति पद पर द्रोणाचार्य का अभिषेक, द्रोणाचार्य द्वारा भयंकर युद्ध, अर्जुन का संशप्तकों से युद्ध, द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण, अभिमन्यु द्वारा पराक्रम और व्यूह में फँसे हुए अकेले नि:शस्त्र अभिमन्यु का कौरव महारथियों द्वारा वध, षोडशराजकीयोपाख्यान, अभिमन्यु के वध से पाण्डव-पक्ष में शोक, संशप्तकों के साथ युद्ध करके लौटे हुए अर्जुन द्वारा जयद्रथवध की प्रतिज्ञा, कृष्ण द्वारा सहयोग का आश्वासन, अर्जुन का द्रोणाचार्य तथा कौरव-सेना से भयानक युद्ध, अर्जुन द्वारा जयद्रथ का वध, दोनों पक्षों के वीर योद्धाओं के बीच भीषण रण, कर्ण द्वारा घटोत्कच का वध, धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य का वध।

 

भीष्म पितामह शैया पर लेटे हुए थे और कौरवों की सेना को जरूरत थी एक नए सेनापति की जोकि सेना का नेतृत्व कर सके। ऐसे में यह जिम्मेदारी गुरु द्रोणाचार्य को दी गई। गुरु द्रोणाचार्य एक महान गुरु और सैनिक थे उनका अंत करना इतना आसान नहीं था। 11 वे और 12 वे दिन का युद्ध समाप्त हुआ। इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की।  13 वे दिन के युद्ध में अर्जुन का बेटा अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़ने गया। जहां पर कौरव सेना के महारथियों ने उसका वध कर दिया।

 

चौदवे दिन अर्जुन ने जयद्रथ (अभिमन्यु के वध में शुमार) का वध करने का संकल्प लिया लेकिन सूरज के अस्त होने पर भी वह उस तक नहीं पहुंच सका। तब उसने अपने आप को आग में समर्पित करना चाहा लेकिन श्रीकष्ण की लीला के अनुसार जैसे ही वह आज मैं अपने आप को समर्पित करने जा रहा था कि सूर्य देव के दर्शन हो गए और जयद्रथ सामने खड़ा था अर्जुन ने अपनी बाण से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। 

 

द्रोणाचार्य को मारना बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा था इसलिए उनको मारने के लिए छल का सहारा लिया गया और उनके समक्ष यह झूठी सूचना पहुंचाई गई कि भीम ने उनके बेटे अश्वत्थमा को मार दिया है। जैसे ही उनको यह सूचना मिली उन्होंने अपने हथियारों को जमीन पर रख दिया और जैसे उन्होंने अपने हथियार को जमीन पर रखा। द्रुपद के बेटे निर्गुण आने आचार्य का सिर धड़ से अलग कर दिया और इस प्रकार द्रोणाचार्य का अंत हो गया।

 

8. कर्ण पर्व महाभारत | Karna Parv Mahabharat Story In Hindi

 

इस पर्व में सेनापति के पद पर कर्ण का अभिषेक, शल्य का कर्ण का सारथि बनना, अर्जुन द्वारा कौरव सेना का भीषण संहार, कर्ण और अर्जुन का युद्ध, कर्ण के रथ के पहिये का पृथ्वी में धँसना, अर्जुन द्वारा कर्णवध, कौरवों का शोक, शल्य द्वारा दुर्योधन को सान्त्वना देना आदि वर्णित है।

 

गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद कौरव सेना का सेनापति कर्ण को बनाया गया और आगे युद्ध प्रारंभ हुआ। अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध हुआ और युद्ध के दौरान अनेक तरह के शस्त्रों - अस्त्रों का प्रयोग किया गया. कोई भी योद्धा किसी से भी कम नहीं था। दोनों में बराबरी की जंग हो रही थी तभी कर्ण के रथ का पहिया जमीन पर धंस गया जिसको बाहर निकालने के लिए कर्ण जमीन पर उतरा और इसी मौके का फायदा उठाकर भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने कर्ण का सर उसके धड़ से अलग कर दिया। कर्ण का सर उसके धड़ से अलग होते ही कौरव सेना में हाहाकार मच गया।

 

9. शल्य पर्व महाभारत | Shalya Parv Mahabharat Story In Hindi

 

इस पर्व में कर्ण की मृत्यु के पश्चात् कृपाचार्य द्वारा सन्धि के लिए दुर्योधन को समझाना, सेनापति पद पर शल्य का अभिषेक, सहदेव द्वारा शकुनि का वध, दुर्योधन का ह्रद में प्रवेश, व्याधों द्वारा जानकारी मिलने पर युधिष्ठिर का ह्रद पर जाना, युधिष्ठिर का दुर्योधन से संवाद, श्रीकृष्ण और बलराम का भी वहाँ पहुँचना, दुर्योधन के साथ भीम का वाग्युद्ध और गदा युद्ध और दुर्योधन का धराशायी होना, क्रुद्ध बलराम को श्री कृष्ण द्वारा समझाया जाना, दुर्योधन का विलाप और सेनापति पद पर अश्वत्थामा का अभिषेक आदि वर्णित है।

 

कर्ण की मृत्यु के पश्चात शल्य को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया और उन्होंने पांडवों के साथ युद्ध करना शुरू किया। उन्होंने अच्छे पराक्रम का प्रदर्शन किया लेकिन युधिष्ठिर के साथ युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए और शकुनी मामा को सहदेव ने मार गिराया। यह देखकर दुर्योधन अपना गदा लेते हुए युद्ध स्थल से बाहर चला गया और एक सरोवर में जाकर छुप गया। 

 

उसे छिपते M हुए कुछ लोगों ने देख लिया। उन लोगो ने बताया कि उन्होंने एक मुकुट धारी व्यक्ति को सरोवर कके अन्दर छुपते हुए देखा है। बलराम, कृष्ण और सभी पांडव उस सरोवर पर पहुंचे जहां भीम ने दुर्योधन को अपशब्द कहते हुए ललकारा तो दुर्योधन सरोवर से बाहर आ गया और दोनों के बीच गदा युद्ध प्रारंभ हुआ जिसके निरीक्षक बलराम बने। श्री कृष्ण के द्वारा याद दिलाए जाने पर भीम ने दुर्योधन की जांघ पर प्रहार किया जिससे उसकी जांघ की हड्डी टूट गई और वह गिर गए और इसके बाद उन्होने उसके सिर पर प्रहार किया जिसका बलराम ने विरोध किया लेकिन श्रीकृष्ण ने बलराम को समझाया तब बलराम शांत हुए।

 

10. सौप्तिक पर्व महाभारत | Souptik Parva Mahabharat Story In Hindi

 

अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य-कौरव पक्ष के शेष इन तीन महारथियों का वन में विश्राम, तीनों का पाण्डवों के शिविर की ओर प्रस्थान, अश्वत्थामा द्वारा रात्रि में पाण्डवों के शिविर में घुसकर समस्त सोये हुए पांचाल वीरों का संहार, द्रौपदी के पुत्रों का वध, द्रौपदी का विलाप अर्जुन व अश्वत्थामा के बीच युद्ध, अश्वत्थामा का वन में प्रस्थान आदि इस पर्व में वर्णित है।

 

दुर्योधन के घायल हो जाने के बाद कौरवों की सेना में तीन महारथी अश्वत्थामा कृतवर्मा और कृपाचार्य ही बचे हुए थे जिसमें से दुर्योधन ने अश्वत्थामा को सेनापति बना दिया और उससे पांडवों का सर्वनाश करने के लिए कहा। अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में पहुंचा जहां पर उसने पांडवों को सोता हुआ समझकर पांचाल वीरों और द्रोपदी के पुत्रों का गला काट दिया।

 

 वह शीशों को लेकर दुर्योधन के पास पहुंचा। वह शीश पांडवों के ना होने के कारण दुर्योधन अत्यंत ही दुख से भर गया और अपने प्राणों को त्याग दिया। इधर द्रौपदी ने पांडवों से अश्वत्थामा के वध की मांग की। अश्वत्थामा और अर्जुन के बीच युद्ध हुआ। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और इसके बदले अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। दो ब्रह्मास्त्र के आपस में टकराने से बहुत ही ज्यादा ऊर्जा निकलती जिससे संसार का अंत हो जाता है। इसको रोकने के लिए वेदव्यास और नारद जी ने दोनो से इस अस्त्र को वापस लेने का निवेदन किया। अर्जुन ने अपने अस्त्र को वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने बोला कि हमें अपने अस्त्र को वापस लेना नहीं आता है। इसपर वेदव्यास ने कहा कि आपको अपने अस्त्र को चलाने पर अपनी कोई प्रिय चीज हमे देनी होगी। अस्त्र ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ का नाश कर दिया और इसके बदले अश्वत्थामा ने अपने मस्तक की मणि दे दी जिससे उसके तेज का नाश हो गया और वह उनकी ओर चला गया।

 

11. स्त्री पर्व महाभारत | Stree Parva Mahabharat Story In Hindi

 

स्त्री पर्व में दुर्योधन की मृत्यु पर सभी का विलाप, स्त्रियों और प्रजा के साथ धृतराष्ट्र का युद्ध भूमि में जाना, पाण्डवों का कुन्ती से मिलना, द्रौपदी, गान्धारी आदि स्त्रियों का विलाप, गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को क्रोधवश शाप देना, युधिष्ठिर द्वारा मृत योद्धाओं का दाहसंस्कार और जलांजलिदान आदि वर्णित है।

 

दुर्योधन की मृत्यु के बाद महाराज धृतराष्ट्र, विदुर और उनकी पत्नी गांधारी अपनी प्रजा के साथ कुरुक्षेत्र पर पहुंचते हैं और दुर्योधन के शव को देखकर विलाप करते हैं। पांडव और श्री कृष्ण भी कुरुक्षेत्र पर पहुंचते हैं और फिर धृतराष्ट्र कहते हैं कि उन्हें भीम को गले लगाना है और श्री कृष्ण धृतराष्ट्र के कलुषित मन को समझ जाते हैं और उनके सामने भीम की मूर्ति को रखते हैं। धृतराष्ट्र इतनी तेजी से भीम की मूर्ति को गले लगाते हैं कि मूर्ति चकनाचूर हो जाती है और वह सोचते हैं कि भीम का सर्वनाश हो गया है लेकिन बाद में पता चलता है कि वह भीम की मूर्ति थी जिसकी वजह से वह बहुत लज्जित होते हैं। इसके बाद युधिष्ठिर के द्वारा सभी लोगों का दाह संस्कार किया जाता है। गांधारी क्रोध में आकर श्रीकृष्ण को श्राप दे देती हैं कि जिस तरह से तुम्हारे कारण मेरे वंश का नाश हुआ है उसी तरह से तुम्हारे भी वंश का नाश हो जाएगा। कुंती सभी के सामने अपने पुत्र कर्ण का राज खोलती हैं जिसके बाद युधिष्ठिर सभी स्त्रियों को यह श्राप देते हैं कि स्त्रियों के पेट में कोई भी बात नहीं बचेगी।

 

12. शान्ति पर्व महाभारत | Shanti Parv Mahabharat Story In Hindi

 

शान्तिपर्व में धर्म, दर्शन, राजनीति और अध्यात्म ज्ञान का विशद निरूपण किया गया है। इस पर्व में युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर का शोकाकुल होकर पश्चाताप करना, श्री कृष्ण सहित सभी लोगों द्वारा उन्हें समझाना, युधिष्ठिर का नगर प्रवेश और राज्याभिषेक, सबके साथ पितामह भीष्म के पास जाना, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर आदि वर्णित है।

 

युद्ध की समाप्ति के बाद युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होता है और युधिष्ठिर भीष्म पितामह से मिलकर ज्ञान लेते हैं। भीष्म पितामह उन्हें राजधर्म, आपद्धर्म और मोक्षधर्म का उपदेश आदि देते है।

 

13. अनुशासन पर्व महाभारत | Anushasan Parv  Mahabharat Story In Hindi

 

इस पर्व में भी भीष्म के साथ युधिष्ठिर के संवाद का सातत्य बना हुआ है। भीष्म का प्राणत्याग और लोगो के द्वारा शोक का वर्णन यहां पर है।

 

भीष्म पितामह, युधिष्ठिर से कहते है कि पुरुषार्थ ही भाग्य है। राजा का धर्म है-पूरी शक्ति से प्रजा का पालन करें तथा प्रजा के हित के लिए सब कुछ त्याग दे। भीष्म युधिष्ठिर को नाना प्रकार से तप, धर्म और दान की महिमा बतलाते हैं।

 

सूर्य उत्तरायण में आ जाने पर भीष्म पितामह अपने प्राणों का त्याग करते हैं। सभी लोग शोकाकुल हो जाते हैं युधिष्ठिर उनका अंतिम संस्कार करते हैं।

 

14. आश्वमेधिक पर्व महाभारत | Aashwamedhik Parv  Mahabharat Story In Hindi

 

आश्वमेधिक पर्व में युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ करना, अर्जुन द्वारा कृष्ण से गीता के विषय मे पूछना, श्री कृष्ण द्वारा अनेक आख्यानों द्वरा अर्जुन का समाधान करना, अश्वमेध यज्ञ की सम्पन्नता, युधिष्ठिर द्वारा वैष्णवधर्मविषयक प्रश्न और श्रीकृष्ण द्वारा उसका समाधान आदि विषय वर्णित हैं।

 

युधिष्ठिर के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया जाता है और अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्जुन को दी जाती है। अश्व जहां भी जाता है सभी युधिष्ठिर के पराक्रम को स्वीकार करते हैं और इस प्रकार अश्वमेध यज्ञ पूरा होता है।

 

15. आश्रमवासिक पर्व महाभारत | Aashramvasik Parv  Mahabharat Story In Hindi

 

आश्रमवासिक पर्व में धृतराष्ट्र, गान्धारी कुन्ती के साथ विदुर और संजय भी वन की तरफ प्रस्थान करते है। विदुर वन में ही समाधि ले लेते है जबकि धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का दावानल में जलकर भस्म हो जाते है। युधिष्ठिर को नारद जी के द्वारा यह समाचार मिलने पर युधिष्ठिर विलाप करने लगते है।

 

16. मौसल पर्व महाभारत | Mausal Parv Mahabharat Story In Hindi

 

मौसल पर्व कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त होने के 36 वें वर्ष में कृष्ण के निधन का वर्णन करता है। यादव वंश के बीच लड़े गए गृहयुद्ध में यादव वंश का सर्वनाश हो गया। श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने भी समाधि ले ली। इसके बाद श्री कृष्ण भी वन चले गए और वहां पर हिरन के धोखे में एक शिकारी में बाण चलाया जो कि उनके तलवे में आकर लगा और वह परलोक चले गए।

 

17. महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत | Mahaprasthanik Parv Mahabharat Story In Hindi

 

भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद से पांडवों के मन में वैराग्य की भावना आ गई और युधिष्ठिर ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज पाट सौप कर हिमालय की ओर प्रस्थान करने का सोचा और उन्होंने ऐसा ही किया। उनके साथ में एक कुत्ता भी था। धीरे-धीरे हिमालय की चढ़ाई चढ़ते हुए उनके सभी अपने बिछड़ते गए मात्र युधिष्ठिर ही थे जो अंत तक आगे बढ़ते रहे और बाद में इंद्र ने स्वयं आकर युधिष्ठिर को सशरीर स्वर्ग ले गए।

 

18. स्वर्गारोहण पर्व महाभारत | Swargarohan Parv  Mahabharat Story In Hindi

 

स्वर्ग पर युधिष्ठिर कौरवों को देखते हैं लेकिन अपने किसी भी भाई और द्रौपदी को स्वर्ग में नहीं देखते हैं। वह देखते हैं इनके संबंधी नरक में हैं और दुखो को भोग रहे हैं जिस पर वो कहते हैं कि मैं भी नरक जाना चाहता हूं। इसके बाद इंद्र उनको बताते हैं कि यह आपकी परीक्षा के लिए था और उनके सभी भाइयों सहित उनको को स्वर्ग की प्राप्ति हुई है। इस पर्व के अन्त में महाभारत की श्रवणविधि तथा महाभारत का माहात्म्य वर्णित है।

 

आपने क्या सीखा

 

उपरोक्त लेख Mahabharat Story In Hindi | महाभारत की कहानी हिन्दी में के माध्यम से मैंने आपको Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat Hindi Mein, Mahabharat Full Story और Mahabharat Short Story In Hindi, Mahabharat Summary In Hindi, Who Wrote Mahabharata In Hindi, Mahabharat Kya Hai और Mahabharat Katha Hindi Me आदि के बारे में बताया है।

 

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लेख के अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।

Gaurav Sahu
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